दिसंबर 2025 की इनसाइड रिपोर्ट: पटना से मोतिहारी तक कैसे कसा गया भ्रष्टाचारियों पर शिकंजा
बिहार के प्रशासनिक गलियारों में इन दिनों खामोशी तो है, लेकिन वह तूफान के बाद वाली नहीं, बल्कि तूफान के दौरान वाली है. दिसंबर 2025 का महीना राज्य के उन अफसरों और रसूखदार कारोबारियों के लिए किसी बुरे सपने जैसा साबित हो रहा है, जिन्होंने जनता के पैसे को अपनी निजी जागीर समझ लिया था. पटना के पॉश इलाकों से लेकर मोतिहारी की तंग गलियों तक, जांच एजेंसियों ने एक ऐसा जाल बिछाया है जिसमें बड़ी मछलियां फंस रही हैं.
यह रिपोर्ट केवल आंकड़ों का खेल नहीं है; यह उस ‘सिस्टम’ की कहानी है जहां रक्षक ही भक्षक बन बैठे, और कैसे अब उस सिस्टम की सफाई शुरू हुई है.

1. गजाधर मंडल : गुणवत्ता की निगरानी करने वाले का अपना ‘साम्राज्य’
सबसे पहले बात करते हैं पटना की, जहां सत्ता के केंद्र में बैठकर एक अधिकारी अपना अलग ही साम्राज्य चला रहा था. गजाधर मंडल, जो भवन निर्माण विभाग (Building Construction Department) में निदेशक (क्वालिटी मॉनिटरिंग) जैसे जिम्मेदार पद पर थे, का काम था सरकारी इमारतों की मजबूती परखना. लेकिन 16 दिसंबर 2025 की सुबह जब विशेष निगरानी इकाई (SVU) ने उनके दरवाजे पर दस्तक दी, तो पता चला कि वे सरकारी इमारतों की नहीं, बल्कि अपनी ‘निजी सल्तनत’ की नींव मजबूत कर रहे थे.
रेड की इनसाइड स्टोरी: मंगलवार की सुबह जब पटना के एजी कॉलोनी और भागलपुर के सबौर, जगदीशपुर इलाकों में पुलिस की गाड़ियां रुकीं, तो किसी को अंदाजा नहीं था कि क्या निकलने वाला है. SVU की टीम ने जब फाइलों की धूल झाड़ी, तो नोटों की गड्डियां और जमीन के कागजात बाहर आने लगे.
- हैरान करने वाले आंकड़े: शुरू में अनुमान था कि मंडल साहब के पास 2.82 करोड़ की अवैध संपत्ति होगी. लेकिन जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ी, आंकड़ा 3.72 करोड़ के पार चला गया.
- पत्नी के नाम पर खेल: भारतीय भ्रष्टाचार की पुरानी परंपरा को निभाते हुए, मंडल ने अपनी काली कमाई को सफेद करने के लिए पत्नी ‘संध्या कुमारी’ का सहारा लिया. बरामद हुए 16 बेशकीमती प्लॉटों में से 11 उनकी पत्नी के नाम पर थे. इतना ही नहीं, शेयर बाजार और फिक्स्ड डिपॉजिट में भी लाखों रुपये पत्नी के नाम पर निवेश किए गए थे.
यह मामला सिर्फ पैसों का नहीं, विश्वासघात का है. एक इंजीनियर, जिसे 1996 में बिहार को संवारने के लिए चुना गया था, वह भागलपुर से लेकर पटना तक अपनी संपत्ति का नक्शा बना रहा था. अब उन पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम और भारतीय न्याय संहिता (BNS 2023) की सख्त धाराओं में मुकदमा दर्ज हो चुका है.
2. मोतिहारी फाइल्स: जब ‘बाराती’ बनकर आए अफसर
अगर पटना की रेड आपको चौंकाती है, तो मोतिहारी की घटना किसी बॉलीवुड फिल्म की स्क्रिप्ट जैसी है. यहां कार्रवाई का तरीका इतना फिल्मी था कि स्थानीय लोग भी धोखा खा गए.
शादी का स्टीकर और 40 गाड़ियां: पूर्वी चंपारण में रिपुराज एग्रो प्राइवेट लिमिटेड (चावल मिल) के ठिकानों पर जब 40 गाड़ियों का काफिला पहुंचा, तो लोगों को लगा कि किसी बड़े घर की बारात आई है. गाड़ियों पर शादी के स्टीकर लगे थे और लोग जश्न के मूड में दिख रहे थे. लेकिन गाड़ियों से दूल्हा नहीं, बल्कि इनकम टैक्स (IT) और प्रवर्तन निदेशालय (ED) के 150 से ज्यादा अधिकारी उतरे.
- टारगेट: यह रेड रामेश्वर प्रसाद गुप्ता और उनके बेटों के साम्राज्य पर थी, जिनका ताल्लुक बिहार के एक पूर्व मंत्री और कद्दावर भाजपा नेता से है. आरोप है कि 1100 करोड़ के टर्नओवर वाली इस कंपनी ने अपनी असली कमाई छिपाई और बड़े पैमाने पर टैक्स चोरी की.
- संदेश: बारात के भेष में रेड मारने का यह तरीका बताता है कि एजेंसियां अब कितनी सतर्क हैं. रसूखदार राजनीतिक संबंध भी अब ‘कवच’ का काम नहीं कर पा रहे हैं.
3. कबाड़, कार और होटल: टैक्स चोरी का ‘मोतिहारी मॉडल’
भ्रष्टाचार केवल घूस लेना नहीं है, सरकार को उसका हक न देना भी है. मोतिहारी में ही वाणिज्य कर विभाग (Commercial Tax Department) ने एक ऐसे सिंडिकेट का भंडाफोड़ किया, जो हैरान करने वाला है. इसे हम ‘जीएसटी का कबाड़ घोटाला’ कह सकते हैं.
कैसे होता था खेल? आम आदमी जब कार खरीदता है या होटल में खाना खाता है, तो वह ईमानदारी से जीएसटी (GST) चुकाता है. लेकिन मोतिहारी के कुछ बड़े व्यवसायी—जैसे बालाजी हुंडई (ऑटो डीलर) और राम भुवन राम रिसॉर्ट—इस टैक्स को सरकार तक पहुंचने ही नहीं दे रहे थे.
- मोडस ऑपरेंडी (तरीका): जांच में पाया गया कि ये बड़े प्रतिष्ठान अपनी देनदारी चुकाने के लिए नकद (Cash) के बजाय ‘इनपुट टैक्स क्रेडिट’ (ITC) का इस्तेमाल कर रहे थे. यह ITC उन्हें कबाड़ (Scrap) के फर्जी बिलों से मिल रहा था. यानी कागज पर कबाड़ खरीदा गया, उसका फर्जी टैक्स क्रेडिट लिया गया, और उससे अपनी असली बिक्री का टैक्स ‘एडजस्ट’ कर दिया गया.
- कार्रवाई: विभाग ने डेटा एनालिटिक्स का इस्तेमाल कर इस फर्जीवाड़े को पकड़ा. यह आम जनता की जेब से सीधे चोरी थी, जिसे ‘सिस्टम की खामी’ बताकर अंजाम दिया जा रहा था.
4. 5000 रुपये की घूस और सिस्टम का सच
हजारों करोड़ के घोटालों के बीच, सहरसा की एक छोटी सी घटना सिस्टम की जमीनी हकीकत बयां करती है. वहां निगरानी विभाग ने एक राजस्व कर्मचारी राहुल कुमार को महज 5,000 रुपये की रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़ा. यह रकम भले ही गजाधर मंडल की करोड़ों की संपत्ति के सामने कुछ न हो, लेकिन एक गरीब किसान या आम आदमी के लिए, जिसे अपनी जमीन के कागज (Mutation) सही कराने हों, यह 5000 रुपये बहुत भारी होते हैं. यह गिरफ्तारी बताती है कि भ्रष्टाचार केवल ऊपर नहीं, बल्कि जड़ों तक फैला है, और ‘जीरो टॉलरेंस’ का डंडा अब छोटे-बड़े सभी पर चल रहा है.
क्या बदल रहा है बिहार?
दिसंबर 2025 की ये घटनाएं—चाहे वह पटना में इंजीनियर के घर मिला खजाना हो, मोतिहारी में ‘बाराती’ बनकर रेड मारना हो, या जीएसटी चोरी का तकनीकी खेल पकड़ना हो—एक साफ इशारा करती हैं. बिहार में अब ‘डिजिटल निगरानी’ का दौर है. अब आप संपत्ति पत्नी के नाम कर दें या बही-खातों में फर्जीवाड़ा करें, डेटा सब सच उगल देता है.
जनता के लिए इसमें एक सुकून भी है और गुस्सा भी. सुकून इस बात का कि कानून अपना काम कर रहा है, और गुस्सा इस बात का कि जिन्हें ‘लोक सेवक’ कहा जाता है, वे किस तरह जनता के भरोसे का सौदा कर रहे हैं. आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि गजाधर मंडल की जब्त संपत्ति का क्या होता है और मोतिहारी के ‘कबाड़ माफिया’ के तार और कहां तक जुड़ते हैं.
फिलहाल, बिहार के भ्रष्ट गलियारों में हड़कंप है, और संदेश साफ है—”सावधान! अगली रेड आपके दरवाजे पर हो सकती है.”
















